ऐसा सिद्धान्त, जो सत कारण से ही सत् कार्य की उत्पत्ति बताये। प्रत्येक कार्य का कोई न कोई कारण होता है परन्तु इस कारण का स्वरूप क्या होगा इस विषय में दार्शनिकों में मतभेद है। कुछ लोग कहते हैं कि असत् कारण से सत् कार्य उत्पन्न होता है अर्थात् ‘‘असतः सत् जायते‘‘। बीज का विनाश रूप असत् कारण से अंकुर इस सत् कार्य की उत्पत्ति होती है। अद्वैत वेदान्तियों के अनुसार-‘एकस्य सतो विवर्त कार्यजातम्’ अर्थात् समस्त, कार्य एक ही (ब्रम्हरूप) सत् के कल्पित या अतात्विक परिमाण है, वास्तविक या तात्विक कुछ नहीं। तीसरा मत नैयायिको का है, इनके अनुसार सतः ‘असज्जायतेे’ अर्थात् सत् कारण से असत् कार्याेत्पत्ति होती है परमाणु आदि में पूर्णतः अविद्यमान द्वैणुक इत्यादि अभिनव कार्य उत्पन्न करते हैं।